Aapda yaa Avsar
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जैसा कि आप सभी लोग जानते हैं कि हम सब एक बहुत बड़ी महामारी से जूझ रहे हैं ।जहां बहुत से मासूम अपनी जान गवा रहे हैं लोग बिना गुनाह की सजा पा रहे हैं , अपनों से अपने दूर हो रहे हैं, घर में कोई कमाने वाला सदस्य नहीं रहा, कहीं लोग अपनी लापरवाही से इसके शिकार हो रहे हैं और कहीं तो लोग बिना किसी गलती के सजा भुगत रहे हैं, ऐसे बुरे हालात में भी कई अवसरवादी लोग अवसर तलाशने में लगे हुए हैं ।
अगर हम बात करें राजनीति की, तो राजनेता इस अवसर पर भी राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगे हुए हैं ।उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कोई मरे या जिए। उन्हें तो केवल अपनी कुर्सी से प्यार होता है। वह कुर्सी बची रहनी चाहिए किसी भी कीमत पर ।ऐसे अवसर पर उन्हें कुछ ऐसे सुनियोजित कार्य करने चाहिए जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों का भला हो सके लेकिन नेता अपना राजधर्म भूल कर राजनीति करते हैं।
अगर अस्पतालों को देखें तो वहां पर भी लोग अवसर तलाशते मिल जाएंगे ।वह डॉक्टर जिन्हें लोग भगवान समझते हैं वह खुद ही पैसे कमाने की होड़ में लगे रहते हैं ।कभी दवाइयां बेचते हैं तो कभी महंगे इलाज करते हैं । इतने महंगे इलाज एक छोटी सी दवाई भी गरीब परिवार खरीद नहीं सकता। कई जगह पर तो सरकारी दवाइयों को बड़े ऊंचे- ऊंचे दामों पर बेचा जा रहा है। दवाइयों की कालाबाजारी हो रही है।
ऐसे ही बड़े-बड़े संस्थानों को देखें तो वहां भी अवसरवादियों की कमी नहीं है। इस महामारी के दौरान जहां लोगों की जान जा रही है। नौकरियां नहीं है। उनसे महंगी- महंगी फीस वसूले जा रही हैं। अगर विद्यालय चाहे तो विद्यार्थियों की फीस आधी तो कर ही सकता है क्योंकि जिस परिस्थितियों में उन्होंने अपना शिक्षक स्टाफ आधा कर दिया है उनकी सैलरी आधी कर दी है। स्कूल बस बंद है। बिजली का खर्चा नहीं है।
क्लर्क स्टाफ की छटनी कर दी गई है। सफाई कर्मचारी नहीं है, और अभिभावकों से फीस पूरी ली जा रही है पूरे 12 महीनों की । तो काफी सारे अपने खर्चों की जो कटौतीया है उसको वह लोगों की भलाई में लगा सकत है। बेचारे शिक्षक !!.……. जिसका घर ही शिक्षण कार्य से ही चलता है वह इस परिस्थिति में भी अपनी नौकरी बचाने के लिए मजबूर हैं और आधी सैलरी पर ही अपना शिक्षण कार्य सुचारू रूप से करते हैं ।जहां पर नौकरियों की कमी है बेरोजगारी है वह छटनियां बराबर हो रही है,बेगारी है, वहां पर लोग बेबस है। अभिभावकों से पूरी फीस वसूली जाती है और शिक्षक स्टाफ को वेतन से महरूम रखा जाता है। बार-बार स्कूल की आर्थिक अव्यवस्था का हवाला दिया जाता है ।
बड़ी-बड़ी उत्पादन कंपनियां भी मजदूरों की छंटनी करने पर लगी है जो इतने सालों से प्रॉफिट कमाती आई है वह 1 साल के लिए भी अपने श्रमिकों को इस महामारी के समय में मूल सुविधाएं नहीं दे सकती बल्कि उनकी कटौती करने पर लगी हुई है, हां शुरुआत में तो कुछ आर्थिक चुनौतियां थी लेकिन अब सभी चीज वापस से अपनी पटरी पर आ चुकी है लेकिन बेचारे मजदूर, श्रमिक आज भी वह उसी परेशानी से जूझ रहा है तनख्वाह में कोई भी बढ़ोतरी नहीं है उनकी पिछली ही तनख्वाह भी उन्हें टाइम पर नहीं मिल रही है|
- जबकि इस समय आर्थिक परेशानियां बहुत है और साथ-साथ करोना कॉल को लेकर मानसिक परेशानियों से भी इंसान बहुत जूझ रहा है, उन्हें यह नहीं पता कब क्या हो जाए लेकिन इंसान किसी की मदद न करके अपने कमाने का अवसर खोज रहा है अधिक से अधिक कमाना ,अधिक से अधिक जमा करने की होड़ में लगा हुआ है उसे यह बात समझनी होगी कि जान है तो जहान है अगर आप जिओगे तो ही पैसे काम आएंगे इसीलिए लोगों की मदद करें उनकी पीड़ा को समझें कमाने के तो और भी बहुत मौके आएंगे पहले हम इस आपदा से तो बाहर आ जाए
कंपनी के लिए उसका श्रमिक जी तोड़ मेहनत करता है वही कंपनी उसकी परेशानी के समय उससे मुख मोड़ लेती है यह तो बहुत गलत बात है अब आप ही सोचो कि कल तक जो पिछले 20 साल से 30 साल से जिसके लिए वो काम करता है जिसको उसने मोटी रकम कमा कर दी है आज उसकी परेशानी में वही उसके साथ नहीं है ,,,ऐसे में वह बिचारा कहां जाएगा | इसीलिए खुदगर्ज ना बन कर हमदर्द बने अवसर तो बाद में और भी आएंगे…
कृपया आपदा में अवसर ना तलाशें ऐसा नहीं है कि सभी कंपनियां यह सभी संस्थान अपने कर्मचारियों का ध्यान नहीं दे रहे हैं आप टाटा जी को ही देख लीजिए जिन्होंने अपने श्रमिकों का हर कदम पर साथ निभाया है यहां तक कि वह अस्पतालों में ऑक्सीजन सिलेंडर तक पहुंचा रहे हैं और भी कई सारे है कंपनियां योगदान दे रही हैं ऐसा नहीं है कि सभी इस अवसर में शामिल है कुछ अच्छे लोग भी हैं अब इनकी बात छोड़कर अगर हम निचले स्तर पर देखे तो पाते हैं कि जो छोटे छोटे लोग हैं वह भी इस महामारी में अवसर को नहीं छोड़ते। जैसे कोरोना से मृत्यु होने पर शव को हाथ भी नहीं लगाते और शव को श्मशान पहुंचाने के 8 से ₹10000 तक मांगते हैं ।
लकड़ियां तक नहीं मिल रही है लकड़ियों की भी कालाबाजारी हो रही है। यानी अब तो करोना महाकाल में जीने से लेकर मरने तक शोषण ही शोषण है ।अगर मरीज अस्पताल में भर्ती हो जाता है तो एक मोटी रकम वसूली जाती है और तब भी उनकी सेवा के लिए ना तो नर्स स्टाफ होता है और ना ही कंपाउंडर आकर उनकी हाल खबर लेता है। एक बार ऑक्सीजन सिलेंडर फिट करने के बाद दोबारा देखने नहीं आता। अगर वही आप कुछ नोट दिखा दें तो शायद वह आ जाए ।कुछ लोग तो कोरोना की वजह से नहीं बल्कि इन अवसरवादी लोगों की वजह से मर रहे है। सिलेंडर के दाम इतने ज्यादा बढ़ा दिए गए हैं कि एक मध्यम वर्ग का व्यक्ति भी उसे वहन नहीं कर पाता।
इस आपदा में सरकार को तो छोड़ो प्रेशर ग्रुप भी इस अवसर को छोड़ना नहीं चाहते । कुछ अपनी मांगों को लेकर अड जाते हैं। मौके की नजाकत को नहीं समझते। तो इसी मौके का फायदा उठाकर पड़ोसी मुल्क भी हावी हो जाता है। पड़ोसी मुल्क का तो मकसद ही देश को कमजोर करना है ,और यह सब जानते समझते हुए भी हमारे पढ़े-लिखे नेता उस में उलझ जाते हैं।अपोजिशन पार्टी का मतलब यह नहीं है कि आप हर बात में विरोध करें ,सही में भी गलत म भी, हालात को देखते हुए सरकार की मदद करनी चाहिए
अगर हम सब अपने फायदे को ना देखकर जनहित के बारे में सोचें तो बहुत अच्छा होगा । अगर आज यह जो थोड़ा है उसे मिल बांट कर खाएं तो यह परिस्थितियां भी पार हो जाएंगे और आगे फिर वही अच्छे दिन आएंगे ।जरूरत है हमारी समझदारी की, हमारे सहयोग की ,और हमारे नैतिक मूल्यों की जो कहीं ना कहीं इंसान खो बैठा है ।अगर आज वह अपनी जिम्मेदारियां समझ जाए,खुद अपनी अपनी सब जिम्मेदारियां उठाना शुरू कर दें, एक निचले स्तर से अगर हम इस करप्शन को ,इस कालाबाजारी को दूर करें तो वह दिन दूर नहीं जब इस देश से भ्रष्टाचार दूर हो जाएगा।
हमें बड़े-बड़े भ्रष्टाचारियों को ठीक करने की जरूरत नहीं है, बल्कि जरूरत है कि निचले स्तर से शुरूवात करने की। निचले स्तर यानी खुद से ,घर से और फिर अपने दफ्तर से ,फिर अपने गली मोहल्ले से , फिर अपने जिले से ,फिर अपने राज्य से ,फिर देखते देखते धीरे-धीरे फिर अच्छे दिन वापस आ जाएंगे। अपने कर्तव्य का पालन करेंगे तो कोरोना भी हार जाएगा।
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i must say the article is amazing and contains lots of harsh truth
bilkul sahmat hai ji ,yahi to ho rha h
har jagah shoshan, bhrastachar
arreee papiyon! bhagwan se to daro…
paisa le kar upar nhi jaoge
kuchh log logo ka haq mar kr daan dete h. batao kaisa daan h ye
I’m outraged with this type of people
so cruel that guy
bitter truth
karela neem chadha😬😧👹
bilkul sachcha article h
this is how society works.. everyone wants the change to be happen but no one want to be the part of that change
corona se jyada pareshan to daftarshahi ne kr rkha h
Really true I’m a teacher and not just in the school where I teach but even all the other schools in my circle making group (like a gangs) and keep deducting salary even fired teachers for the time lockdown stays like they are manufacturers or OEM company whose business is having a large impact cuz of lockdown, but from students they even charge for the June month fee too.
I’m annoyed with pessimistic situation there is no option to servive happily without any terms and conditions