Suhana bachpan
सुहाना मौसम था और यूहीं बैठा ख़यालो में खोया था के छन से कुछ बूंदे गिने लगी वो चंद बूंदे ज़मीन पर गिरते ही गायब हो गई मानो गिरी ही नहीं हो तो याद आया के इस सुहाने मौसम से पहले काफी तपन थी जो ज़मीन और तन को जला रही थी|
इसी बीच मन में कुछ ख्याल बचपन वाली कागज की कश्ती बनाने और उसको बारिश के पानी की तेज धारा में बहाकर बचपन के उन दोस्तों के साथ नोका दौड़ में चले गए , मुझे याद है मैने कागज की वो नाव बनाना अपने बड़े भाई से सीखा था और कागज का हवाई जहाज भी और में इस हस्त कला का काफी शौकीन था सबसे अच्छी नाव मेरी हुआ करती थी और हम बेहती नाली में अपनी अपनी नाव को छोड़ देते थे और बड़े हर्षो उल्लास से उसको कभी आगे कभी पीछे होते देखते देखते उसके साथ जाते थे,
किसी की नाव तो तेज धार की वजह से पलट जाती थी तो उसके ऊपर हस दिया करते थे। वो बहती हुई कागज की नाव एसे लगती थी जैसे समुद्री लुटेरों के जहाज हो। अक्सर अपने दोस्तो की नाव भी में बना दिया करता था और हम सब बारिश की उन बूंदों में भीगते हुए बचपन के उन पलों का मस्ती से आनंद लिया करते थे, तभी टपर टपर काफी तेज बूंदे गिरने लगी और कुछ बूंदे मेरे चहरे पे भी गिरी मन मचल उठा फिर से एक नाव बनाने को और वो बचपन वाली याद फिर से जीने को, मन मचल गया के फिर से भीग जाऊं फिर से में यारो के साथ मिलकर वो कश्ती बहाऊं फिर से में बचपन में चला जाऊं काश फिर से में बच्चा बन जाऊं काश फिर से में बच्चा बन जाऊं।
Written by Hitesh
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Nice 👍
Absolutely true ,😄 childhood is a lovely stage of life
nice story