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Yaadein
आज मैं अपने मायके गई
याद आ गई अपने बचपन की बातें कई।
देखकर वह हर गली हर कोना याद आ गया मुझको सुबक सुबक कर रोना।
इन गलियों में मेरा बचपन बीता याद आ गया वह गोल-गप्पे का पानी तीखा।
इन गलियों के हर एक कोने में मेरी यादें बसी थी,
हर एक कोने में मेरे वह लड़ने झगड़ने की बातें बसी थी ।
जहां मैं हर किसी से लड़ती थी, झगड़ती थी, खेला करती थी,
आज वही कोना मुझे दूर खड़ा देखता है
मुझसे लिपटना चाहता है ।
बस वह सब यादें ही रह गई,
मेरे सीने में बनकर फास
यही कुछ यादें रह गई
मेरे पास ..मेरे पास -मेरे पास।
उन गलियों को देखकर जी करता है,
कि वह बचपन फिर मिल जाए
फिर से हर एक कोना ,
मेरी नटखट आदतों से आबाद हो जाए
मैं फिर से खेलू-कूदू और झूम झूम कर नाचू।
याद आ गया मुझे वह बारिश का पल
जब हम घर से निकल आते थे बिना चप्पल
और पानी में छप- छप छप -छप खेला करते थे
जी भर कर पानी में भीगा करते थे।
कहीं कुछ नहीं होता था
किसी को कितनी भी चोट लगे, नहीं कोई रोता था ।
पर आज देखती हूं जब वह गलियां ,
तो लगता है वही पागल -सी लकड़ी दौड़ रही है
यहां -वहां ।
बस! अब वह पल यादों में बसते हैं
मैं उन पलों को अपनी आंखों में सजा कर ,
वापस अपने घर आ गई।
वह मीठे से पल मेरे अधरों पर मुस्कान दे गए
मुझे जीने का पैगाम दे गए।
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incredible 👌👌
Lovel….my rockstar….
😘😘😘 lovely
great 👏
Very beautiful poem🙂
Love u so much mam.🥰
Its so beautiful…🙂
Something very very heart touching I have read in recent times…❣
May god bless you with good health ma’am❣❤