Take a moment to read this wonderful poem by Mamta Ma’am and don’t forget to share it with your friends and family! 🌍💚
नयी भावनाएँ, नया हो मन, आओ करें नव का सृजन।
नये आभास, नयी कल्पनाएँ, मिटें चिंताएँ, नया हो चिंतन।
नयी भावनाएँ, नया हो मन
नयी हो मुक्ति, नया हो बंधन, करें हम नव की ओर गमन
जो व्यर्थ है, दिशाहीन है, ऐसी आधुनिकता से मुक्ति पाएँ।
जो शाश्वत है, शिवम (कल्याणकारी) है, उसे जगाएँ, उसे ही पाएँ।
नयी हो पृथ्वी, नया हो गगन|
अपने मन को साधें निशदिन, करें स्वागत नव का हर दिन
दिन हो नया, रात नयी हो, मन में उठी हर बात नयी हो।
ईश्वर के प्रति विश्वास नया हो, मन में फिर उल्लास नया हो।
नयी हो पृथ्वी, नया हो गगन, नया हो गगन, नयी हो गति, नया आगमन।
उन्नति की परिभाषा नयी हो, हृदय की अभिलाषा नया हो
चाँद नयी हो रात, नयी हो तारों की बरात नयी हो
नववर्ष की शुरुआत नयी हो, खुशियों की सौगात नयी हो,
टूटें जड़ता के बंधन।
नयी हो राहें, नया सफ़र, स्वर्णिम भविष्य की हो मंज़िल।
संकल्प और नयी ऊर्जा लेकर, देखें जीवन को नये नज़रिये से हम।
असफलता से सीखें निरंतर, बढ़ाएँ सफलता की ओर कदम।
संस्कृतियों का हो संवर्धन।
नयी हों कलियाँ, नये फूल-पत्ते, हर जीवन में मंगल आए।
क्या हुआ जो पूरे नहीं हुए सपने, क्या नये सपने देखना भूल जाएँ?
अंधेरों से ना डरें कभी भी, आस भरा एक दिया तो जलाएँ।
नूतन का हो अभिनंदन।
संकल्प नये हों, ऊर्जा नयी हो, नये वर्ष में नयी हो पहल।
वर्ष के साथ हम भी बदलें, अग्रसर नव की ओर करें मन।
बदलेगा माहोल ना ऐसेक्यों न बनें इस उलझन का हल?
प्रेम से भरा हो जन-जन।
Don’t forget to comment in the comment section below to appreciate the hard work of our author by sharing this poem with your known person you can also Contact us for any query or if you are interested in writing with us.
Stay tuned for more amazing stories, poems & articles like this.