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सोना और पीतल (व्यंग) | Gold and Copper Poem in Hindi

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एक बार सोने और पीतल में हो गई लड़ाई  

 तू क्यों इतना सस्ता, मुझ पर महंगाई छाई 

           तू तो उसके सीने से लटकता रहता है 

          और मुझे ताले में हर कोई रखता है 

तुझे तो मिली है खुली आजादी 

और मुझे हर कोई बक्से में रखता है

 तू तो यहां वहां शान से घूमता है 

और मुझे हर कोई बस छिपा के रखता है 

              मुझे भी इक्वलिटी चाहिए 

               पीतल के समान आजादी चाहिए 

पीतल ने उसको बहुत समझाया 

बहन तेरी तो अनोखी है काया 

 मेरी किस्मत में तेरे जैसा सुख कहां 

तू सबकी लाडली,नाजों से पाली जाती है 

         मेरी तो कोई कदर नहीं यहां वहां रख देते हैं

          जी भर जाए तो फेंक दें या नया ले आते हैं 

           तुम तो टूट जाओ तो भी तुम्हारी कीमत है 

           अगर खो जाओ तो जमीआसमा एक कर देते हैं

मेरी कहां किस्मत है जो तुमसा प्यार पाऊं 

तुमसे बढ़कर काम करूं पर कम आंका जाऊं

 बहन मुझे भी तो इक्वलिटी चाहिए

 तुम्हारे सामान ही मुझे मेरी कीमत चाहिए

              इतराकर सोना बोली पीतल से 

              भाई एक बात बोलूं,क्या हो तैयार 

              तुम बंद हो जाओ मेरे बक्से में 

             मैं बन जाऊ आज माधुरी का हार 

मुझे तो मजे लेने हैं जश्न में रात भर 

तुम आराम करना आज बक्से में

मुझे तो भाती है दुनिया की चमक 

तुम मौज करो मखमली सकसे (जेल)में

                 पीतल ने बहुत समझाया सोना को 

                 एक न मानी सोना जिद पर रही अड़ी 

                 पार्टी में गई बुरी नजरें उस पर पड़ी

                 लपक कर हार छीना क्रूर हाथों ने

 टूटकर चकनाचूर हुई सोना पछताई

लुट गई तब बात समझ में आई

झूठी थी लड़ाई इक्वलिटी की भाई

मैं तो बक्से में ही अच्छी थी समाई 

                  पीतल तो क्षणभर की कीमत है 

                  मैं तो हु उसकी उम्र भर की कमाई

                  वो तो क्षणिक सुख दे सकता है 

                  मुझसे तो उसने बड़ी उम्मीदे लगाई 

जो चल रहा हैं उसी में अच्छाई है 

न जाने मूर्खो ने क्यों आग भड़काई है 

बक्से में रहना तो मेरी किस्मत है 

 आजादी तो खामखां की लड़ाई है

                   समझदार की ही समझ में ये बात आई है 

                     चलो बस करते हैं “विभा” आगे बहुत खाई है।

                    सोना छोड़ दुनिया पीतल पे ललचाई हैं।

                    सिर फूड़वाने की हमने क्यों कसम खाई है???🤔

Stay tuned for more amazing stories, poems & articles like this.


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Written by Vibha Singh

Story Teller and Proud Teacher

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