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एक राष्ट्र, एक चुनाव | वन नेशन, वन इलेक्शन | One Nation One Election ONOE | Easy Definition in Hindi

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“वन नेशन, वन इलेक्शन” को लेकर मेरे मन में कुछ जिज्ञासा उत्पन्न हुई। जिसको जानने के लिए मैंने बहुत सारे लेखों को पढ़ा। उसका अध्ययन किया तो उसका एक छोटा सा, संक्षिप्त में,आम साधारण लोगों के लिए, साधारण भाषा में समझाने की कोशिश कर रही हूं।

जैसा कि आप लोगों को पता है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहां की प्रशासन प्रणाली संविधान से ही चलती है। हमारा लोकतंत्र संसदीय लोकतंत्र है। संसदीय लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए चुनाव का विधान है। जनता अपने मत के द्वारा अपना नेता स्वयं चुनती है। आजादी के बाद लोकसभा का पहला चुनाव अक्टूबर 1951,विधानसभा का चुनाव फरवरी 1952, राज्यसभा का अप्रैल 1952, राष्ट्रपति का 1952 और उपराष्ट्रपति का 1952 में चुनाव हुआ था। सभी सरकारों का कार्यकाल 5 वर्ष का था। “वन नेशन,वन इलेक्शन” का कॉन्सेप्ट हमारे देश में पहले से ही चला आ रहा था। यह सीक्वेंस सन 1967 में टूट गया। जिसकी वजह से Simultaneously Election का क्रम टूट गया। सरकार भंग होने के बाद, नई सरकार फिर से अगले 5 साल के लिए चुनी जाती थी। कुछ ऐसा ही राज्य सरकारों के साथ भी हुआ। वह भी किन्हीं कारणों से विश्वास मत खो जाने की वजह से या फिर राष्ट्रपति शासन लागू होने की वजह से भंग हो गई और सरकार की चुनावी प्रक्रिया का दौर अनियमित हो गया। परंतु अभी पिछली छः सरकारों ने अपना अपना 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा किया है। शायद हमारे इलेक्शन प्रणाली में कुछ तो संशोधन हुआ होगा। ऐसा मुझे लगता है।

अब हम बात करते हैं “एक राष्ट्र और एक चुनाव” का अभिप्राय अथवा उद्देश्य क्या है?

यह कैसे पुनः लागू किया जाएगा और इसके फायदे क्या है? लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बीच जो अंतराल है वह कैसे ठीक किया जाएगा?

इसको ठीक करने के लिए सबसे पहले संविधान में संशोधन किया जाना जरूरी है और यह संशोधन सदन में सब की सहमति से होगा।

“एक राष्ट्र,एक चुनाव” को फिर से लागू करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया है। जिसका काम यह विश्लेषण करना है कि क्या एक ही समय पर केंद्र और राज्य के चुनाव कराए जा सकते हैं।

इसके लिए हमें यह समझना बहुत जरूरी है कि “एक राष्ट्र,एक चुनाव” का उद्देश्य क्या है? इसका अर्थ है जब किसी राज्य में विधानसभा चुनाव होगा तो वहां के नागरिक विधानसभा के साथ-साथ लोकसभा चुनाव के लिए भी वोट करेंगे और इसके 100 दिनों के अंदर अंदर ही पंचायत और नगर निगम के चुनाव भी करा दिए जाएंगे।

“एक राष्ट्र,एक चुनाव” को लेकर मेरे मन में भी भ्रांति थी की एक ही दिन में पूरे देश में सभी चुनाव करा दिए जाएंगे? एक और संशय यह भी था कि सभी राज्यों के चुनाव अलग-अलग साल में होते हैं और केंद्र चुनाव किसी और साल या महीने में, तो यह कैसे संभव हो पाएगा?

अपने इन्हीं सवालों का उत्तर पाने के लिए मैने कई लोगों के समूहों से चर्चा की। वाद -विवाद हुआ और मैंने यह निष्कर्ष पाया कि इन दोनों चुनावों को एक क्रम में लाने के लिए केंद्र के चुनाव के समय ही विधानसभा के चुनाव भी कराने होंगे। और इसके लिए मौजूदा सरकार का कार्यकाल घटना या बढ़ाना पड़ सकता है। ऐसा करने के लिए संविधान में संशोधन करना पड़ेगा। आर्टिकल 368 के द्वारा केंद्र सरकार इसमें संशोधन कर सकती है। इसके लिए सरकार को 50% राज्य के विधायकों का भी रेक्टिफिकेशन चाहिए होगा। इस संशोधन के बाद जो भी चुनाव होगा (लोकसभा अथवा राज्यसभा) उस राज्य का मतदाता एक ही समय में लोकसभा तथा विधानसभा के लिए वोट देगा। चुनाव के बाद चुनी हुई सरकार 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा करेगी। यदि कोई सरकार बीच में भंग हो जाती है तो फिर से चुनाव होगा और जो सरकार चुनकर आएगी वह केवल बचा हुआ कार्यकाल ही पूरा करेगी और अगला जनरल इलेक्शन तय समय पर ही होगा। इससे चुनाव का क्रम simultaneous चलता रहेगा।

चलिए बात करते हैं इसके फायदे की

इससे यह लाभ होगा कि चुनावी खर्चे कम होगे।2019 के चुनाव में 60,000 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। इतनी बड़ी धनराशि केवल चुनाव पर खर्च करना विकासशील भारत के लिए किसी विस्फोटक से कम नहीं है।

प्रशासन और इलेक्शन कमीशन का समय बचेगा। बार बार इलेक्शन की तैयारी में लगने वाला समय और उर्जा दोनों बचेगी।

सरकारें बार-बार लगने वाले “मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट”से बचेंगे। कोई भी सरकारी पॉलिसी प्रभावित नही होगी। जनता को उसका लाभ मिलेगा।सरकार और प्रशासन को कार्य करने का समय मिलेगा।

Voting turn out भी बढ़ेगा। बार-बार इलेक्शन को लेकर जनता के मन में जो कन्फ्यूजन रहती है वो हटेगी। मतदाता वोट डालने के उत्साहित होंगे।

चुनाव को लेकर मतदाताओं में जागरूकता आयेगी।भारत की अधिकांश जनसंख्या अशिक्षित है। वो यह नहीं समझ पाती कि किस चीज के इलेक्शन है।वो केवल वोट डालते हैं। विश्लेषण के दौरान जनता से पूछने पर पता चलता है कि उन्हें पता ही नहीं कि वह किसके लिए वोट कर रहे हैं।

जनता अपने वोट की कीमत समझेगी।Frequent election होने की वजह से जनता चुनाव के प्रति उदासीन हो जाती है और वोट देने के लिए घर से निकालती ही नहीं। एक बार इलेक्शन होने पर जनता अपने वोट की कीमत समझेगी और वोट डालने जरूर जाएगी। क्योंकि अगला मौका 5 साल बाद ही मिलेगा।

हॉर्स ट्रेडिंग नहीं हो पाएगी। एक साथ चुनाव होने पर नेताओं का एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जाने की संभावना नहीं रहेगी। सरकार स्थिर हो पायेगी।

अब थोड़ा नुकसान की तरफ भी देखते है।

बार बार इलेक्शन होने से सरकार पर दबाव पड़ता है और वो अगले इलेक्शन में बेहतर परफॉर्म करने की कोशिश करती हैं। इसके विपरीत एक बार इलेक्शन होने से सरकार निरंकुश हो जाएगी। वो केवल कार्यकाल के अंतिम चरण में ही एक्टिव रहेगी। उसकी अकाउंटबिलिटी कम हो जाएगी।

5 साल में एक ही बार चुनाव सोच कर पार्टी अपना पूरा दमखम लगा देंगी ।इससे पार्टी चुनावी खर्च बहुत बढ़ा सकती है।

पूरे देश में एक ही समय में इलेक्शन करवाने में इलेक्शन कमीशन को बहुत बड़ा चैलेंज फेस करना पड़ेगा।प्रशासनिक कार्य में मुश्किलें आएंगी। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन,सिक्योरिटी, मैनपॉवर आदि की समस्याएं होगी।

“एक राष्ट्र एक चुनाव”में राष्ट्रीय मुद्दों के आगे क्षेत्रीय मुद्दे दब जाएंगे। ज़्यादातर राष्ट्रीय मुद्दों पर ही ध्यान केंद्रित किया जायेगा।

अब आते हैं निष्कर्ष पर ,

हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। वैसे ही इस प्रणाली के भी कुछ पॉजिटिव और नेगेटिव एस्पेक्ट हैं। लेकिन इसके लाभ राष्ट्रहित में कही अधिक है। ऐसी प्रणाली को अपनाने का निर्णय निस्संदेह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए दूरगामी प्रभाव डालेगा। वैसे ONE NATION, ONE ELECTION पर चर्चा जारी है, और इसका भविष्य भारत के नीति निर्माताओं, न्यायपालिका, चुनाव आयोग और मतदाताओं के सामूहिक ज्ञान से आकार लेगा।

मैने बहुत आसान शब्दों में यह चुनावी प्रक्रिया को समझाने की कोशिश की है।आप को यह विश्लेषण कैसा लगा। कॉमेंट कर के बताए। मिलते है एक नए आर्टिकल के साथ।

।।जय हिंद।।

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Written by Vibha Singh

Story Teller and Proud Teacher

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